Monday 1 July 2013

This book on khap Panchayts has been published by National Book Trust, India, new Delhi. Several students from Delhi University, Punjab University and some journalists are conducting studies on Khaps. However, there is hardly any research material on Khaps is available. This book is result of consistent work and study for last 30 years. Those interested to read this book may procure it from various outlets of NBT or by placing order through local book sellers. At Chandigarh the book may be available from Punjab Book Centre, Sector 22.


6 comments:

  1. पुस्तक के पृष्ठ संख्या 39 -40 से एक उद्धरण : "....यह दृश्य मध्यकालीन इतिहास का लगता है लेकिन यह घटना वर्ष 1993 के अंत में घटित हुई I 14 फरवरी 1993 को भिवानी निवासी जाट जाति के पुनिया गोत्र से संबधित बख्तावर के दो बेटों का विवाह सोनीपत जिले के नूरखेड़ा गाँव की एक विधवा की दो बेटियों से हुआ, जिनका संबध सांगवान गोत्र से था I 14 मार्च को भिवानी जिले के पैंतावास गाँव में जाट जाति के सांगवान गोत्र की खप पंचायत हुई जिसमे इस विवाह को अवैध घोषित कर दिया गया I यह सगोत्र विवाह का मामला नहीं था लेकिन तर्क दिया गया कि भिवानी में निवास से पहले बख्तावर का परिवार पैंतावास में रहता था I गाँव पैंतावास में सांगवान गोत्र का अधिपत्य है I इसलिए पूनिया गोत्र का व्यक्ति सांगवान गोत्र की लड़की से विवाह नहीं कर सकता I शादी को अवैध करार देकर बख्तावर पूनिया पर इक्यावन हज़ार रुपये जुर्माना लगाया गया और जिन पूनिया गोत्र के जाटों ने इस विवाह में भाग लिया , प्रत्येक पर 11 हज़ार रुपये जुर्माना लगाया गया I पंचायत ने पूनिया गोत्र के 14 परिवारों का सामाजिक बहिष्कार करने का फैसला लिया I बख्तावर पूनिया का परिवार भिवानी में रहता था इसलिए सामाजिक बहिष्कार के अभिशाप से बच गया लेकिन पैंतावास में रहने वाले पूनिया गोत्र के लोगों को भयावह अनुभवों से गुजरना पड़ा I 8 मार्च को पूनिया गोत्र के 19 परिवारों को अपने घरेलु सामान और खड़ी फसलें छोड़कर सामूहिक तौर पर गाँव से भागना पड़ा I उनके घर तबाह कर दिए गए थे और गलियों में उनके बर्तन-भांडे बिखरे पड़े थे और उनकी फसलें लूटी अथवा तबाह की जा चुकी थी I जब लेखक ने गाँव का दौरा किया तो पूनिया गोत्र के लोगों के मकान नष्ट थे I ............"

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  2. पुस्तक के पृष्ठ संख्या 39 से एक उद्धरण : "पैंतावास मामला: सांगवान बनाम पूनिया

    एक गोत्र से संबधित लोगों को एक विशेष गाँव में एकत्रित होने के 40 गावों में मुनादी करवाई गई ताकि वे अपने प्रतिद्वंदी गोत्र से मुकाबला कर सकें I हजारों लोग एकत्रित हुए जिनके पास बंदूकें, कुल्हाड़ी, तलवारें,सरिये, जेली और इसी तरह के अन्य हथियार थे I जिनके पास लोहे के हथियार नहीं थे, उन्होंने लाठियां ले राखी थी I महिलाओं ने भी लाठिय ले रखी थी I बच्चों के हाथों में ईंट - पत्थर थे I

    लगभग बारह किलोमीटर दूर प्रतिद्वंदी गोत्र के लोग इकठ्ठा हुए, वहां भी हजारों लोग थे I अधिकांश के पास हथियार थे I वे दूर से आये थे और अपने साथ खाद्य- सामग्री और रसोइये भी लाये थे क्योंकि आगे था एक लम्बा चलने वाला संभावित युद्ध, जिसमें बहुत खून बह सकता था I हालाँकि खून से अधिक इज्जत का सवाल था I

    .यह दृश्य मध्यकालीन इतिहास का लगता है लेकिन यह घटना वर्ष 1993 के अंत में घटित हुई I 14 फरवरी 1993 को भिवानी निवासी जाट जाति के पुनिया गोत्र से संबधित बख्तावर के दो बेटों का विवाह सोनीपत जिले के नूरखेड़ा गाँव की एक विधवा की दो बेटियों से हुआ, जिनका संबध सांगवान गोत्र से था I 14 मार्च को भिवानी जिले के पैंतावास गाँव में जाट जाति के सांगवान गोत्र की खाप पंचायत हुई जिसमे इस विवाह को अवैध घोषित कर दिया गया I यह सगोत्र विवाह का मामला नहीं था लेकिन तर्क दिया गया कि भिवानी में निवास से पहले बख्तावर का परिवार पैंतावास में रहता था .

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  3. पुस्तक के पृष्ठ संख्या 47 से एक उद्धरण :

    "आसंडा: राठी बनाम हुड्डा

    हरियाणा के झज्जर जिले के आसंदा गाँव के निवासी राठी गोत्र के रामपाल का विवाह रोहतक जिले के सांगी गाँव के हुड्डा गोत्र की लड़की सोनिया से हुआ . सितम्बर 2004 में राठी खाप के मुखिया धर्मसिंह राठी की अध्यक्षता में खाप पंचायत हुई , जिसमें रामपाल और सोनिया का विवाह रद्द कर दिया गया . उनको भाई- बहन घोषित किया गया। कुछ युवाओं के साथ पंचायत के एक बुजुर्ग रामपाल के घर गए और उसे दस रुपये का देकर सोनिया को शगुन के रूप में देने को कहा . रामपाल ने दबाव में नोट स्वीकार कर लिया यधपि सोनिया ने साहस दिखाया और बुजुर्ग का विरोध करते हुए कहा कि जिसका बच्चा उसके गर्भ में है वह उसे भाई कैसे स्वीकार कर सकती है. विरोधस्वरूप वह घरसे बाहर चली गयि. उसे गहरा सदमा लगा और वह बीमार पद गई और उसे रोहतक अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा .
    ....................इस पुस्तक के लेखक समेत कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आसंडा गाँव का दौरा किया और सबसे पहले वे वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के प्रधानाचार्य पद से सेवा निवृत बुजुर्ग व्यक्ति से मिले जो उस खाप पंचायत में पन्च थे ,.....................उन्होंने बताया कि यह लड़की ऐसे परिवार से आई है जो वर्तमान में तो हूड्डा है, लेकिन यह परिवार पांच सौ साल पहले राठी था इसलिए यह भाई-बहन के बीच शादी है.

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  4. जाटों की खाप पंचायतों पर एम सी प्रधान संभवत: पहले शोधकर्ता हैं . उनका शोध पश्चिमी उत्तर-प्रदेश के मुज्जफ्फरनगर जिले में जाटों की बालियान गोत्र की खाप के संबध में है. उनके अनुसार साझा वंश और साझा निवास ही खाप की सरंचना का मूल आधार है. "विशेष मुद्दों पर निर्णय के लिए विशेष वंश, उसकी खाप-सभा अथवा उसकी उप-शाखाओं को बुलाया जाता है. इन सभाओं के निर्णायकों का चयन विशेष सभा एवं उद्देश्य के लिए किया जाता है. ये निर्णायक न तो स्थाई होते हैं और न ही इनके कार्यकाल की कोई निश्चित अवधि होती है. " (पृष्ठ 10 से एक उद्धरण )

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  5. पुस्तक के पृष्ठ 1 से :

    " खाप शब्द की व्युत्पत्ति कहाँ से हुई? कई दशकों से खाप-संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर रहे कबूल सिंह के अनुसार इसका अर्थ है संघ अथवा संगठन . मध्यकालीन भारतीय इतिहास के एक एक इतिहासकार के अनुसार यह एक उर्दू सबधी जिसका अर्थ है शाखा, जिसका प्रयोग किसी जाति की विभिन्न शाखा रूपी गोत्रों को निरुपित करने के लिए किया जाता है . एक अन्य मत के अनुसार 'खाप' शब्द हिंदी के 'खेप' शब्द का बिगड़ा हुआ रूप है. भीम सिंह दहिया के अनुसार 'खाप' शब्द संभवत: शक शब्द 'सत्रापी' अथवा 'खत्रापि' से निकला है जिसका अर्थ है एक ऐसा क्षेत्र जिसमे एक विशेष कुल के लोग रहते हैं ......."

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  6. पृष्ठ 9 से :

    ".......मध्यकाल में सत्ता के केंद्र दिल्ली के निकटवर्ती क्षेत्रों में जीवन अत्यंत असुरक्षित था . अराजकता , राजमार्गों पर डकैती, लूट-पाट और हत्या जैसी घटनाएं रोज का चलन थी। पूरा इलाका हत्यारों और लुटेरों के आतंक का शिकार था.ऐसी स्थिति में, सम्भावना है कि अपनी पुरानी कबीलाई परम्परा से संकेत लेते हुए, चुनौतियों का सामना करने, जीवन और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इस भूभाग के लोगों ने खाप जैसी संस्था का निर्माण किया। ......................"

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